गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
सातवां अध्याय
ज्ञानविज्ञान योग
श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान बोले- हे पार्थ! मेरे में मन पिरोकर और मेरा आश्रय लेकर योग साधता हुआ तू निश्चयपूर्वक और संपूर्ण रूप से मुझे किस तरह पहचान सकता है सो सुन। ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत:। अनुभवयुक्त यह ज्ञान में तुझे पूर्णरूप से कहूंगा। इसे जानने के बाद इस लोक में अधिक कुछ जानने को नहीं रह जाता। मनुष्याणां सहस्त्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये। हजारों मनुष्यों में से कोई ही सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है। प्रयत्न करने वाले सिद्धों में से भी कोई ही मुझे वास्तविक रूप से पहचानता है। भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंभाव- यह आठ प्रकार की मेरी प्रकृति है। टिप्पणी- इन आठ तत्वों वाला स्वरूप क्षेत्र या क्षर पुरुष है।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ देखो अध्याय 13—5; और अध्याय 15—16
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