गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-बोध
पहला अध्याय
शुक्लकृष्णे गतीह्येते जगत: शाश्वते मते। जगत में ज्ञान और अज्ञान के दो परम्परा से चलते आये मार्ग माने गये हैं। ज्ञान-मार्ग से मनुष्य मोक्ष पाता है, अज्ञान-मार्ग से उसे पुनर्जन्म प्राप्त होता है। [1] मंगलप्रभात पांडव और कौरवों के अपनी सेना सहित युद्ध के मैदान कुरुक्षेत्र में एकान्त होने पर दुर्योधन द्रोणाचार्य के पास जाकर दोनों दलों के मुख्य-मुख्य योद्धाओं के बारे में चर्चा करता है। युद्ध की तैयारी होने पर दोनों ओर के शंख बजते हैं और अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण भगवान उसका रथ दोनों सेनाओं के बीच में लाकर खड़ा करते हैं। अर्जुन घबराता है और श्रीकृष्ण से कहता है कि मैं इन लोगों से कैसे लडूं? दूसरे हो तो मैं तुरंत भिड़ सकता हूं, लेकिन ये तो अपने स्वजन ठहरे। सब चचेरे भाई-बंधु हैं। हम एक साथ पले हैं। कौरव और पांडव कोई दो नहीं हैं। द्रोण केवल कौरवों के ही आचार्य नहीं हैं, हमें भी उन्होंने सब विद्याएं सिखाई हैं। भीष्म तो हम सभी के पुरखा हैं। उनके साथ लड़ाई कैसी? माना कि कौरव आततायी हैं, उन्होंने बहुत दुष्ट कर्म किये हैं, अन्याय किये हैं, पांडवों की जगह-जायदाद छीन ली है, द्रौपदी जैसी महासती का अपमान किया है। यह सब उनके दोष अवश्य हैं, पर मैं उन्हें मारकर कहाँ रहूंगा? ये तो मूढ़ हैं, मैं इन-जैसा कैसे बनूं? मुझे तो कुछ समझ है, सारासार का विवेक है। मुझे यह जानना चाहिए कि अपनों के साथ लड़ने में पाप है। चाहे उन्होंने हमारा हिस्सा हजम कर लिया हो, चाहे वे हमें मार ही डालें, तब भी हम उन पर हाथ कैसे उठावें? हे कृष्ण! मैं तो इन सगे-संबंधियों से नहीं लडूंगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीता 8\26
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज