गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द16.भगवान् की अवतरण-प्रणाली
यह जन्म मनुष्य को दिव्य मानवता का एक ऐसा आध्यात्मिक सांचा देने के लिये होता है जिसमें मनुष्य की जिज्ञासुं अंतरात्मा अपने-आपकों ढाल सके। यह जन्म एक धर्म देने के लिये-कोई संप्रदाय या मतविशेषमात्र नहीं, बल्कि आंतर और बाह्म जीवनयापन की प्रणाली-आत्म-संस्कारक मार्ग, नियम और विधान देने के लिये होता है जिसके द्वारा मनुष्य दिव्यता की और बढ़ सके। चूंकि मनुष्य का इस प्रकार आगे बढ़ना, इस प्रकार आरोहण करना मात्र पृथक और वैयक्तिक व्यापार नहीं है, बल्कि भगवान् के समस्त जगत्-कर्म की तरह एक सामूहिक व्यापार है, मानवमात्र के लिये किया गया कर्म है इसलिये अवतार का आना मानव-यात्रा की सहायता के लिये, महान् संकट-काल के समय मानवजाति को एक साथ रखने के लिये, अधोगामी शक्तियां जब बहुत अधिक बढ़ जाए तो उन्हें चूर्ण-विचूर्ण करने के लिये, मनुष्य के अंदर जो भगवन्मुखी महान् धर्म है उसकी स्थापना या रक्षा के लिये भगवान् के साम्राज्य की (फिर चाहे वह कितना ही दूर क्यों न हो) प्रतिष्ठा के लिये, प्रकाश और पूर्णता के साधकों, साधूनां, को विजय दिलाने के लिये और जो अशुभ और अंधकार को बनाये रखने के लिये युद्ध करते हैं उनके विनाश के लिये होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज