गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 350

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

नवम: सर्ग:
मुग्ध-मुकुन्द:

अष्टदश: सन्दर्भ:

18. गीतम्

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कलहान्तरिता- सखियों के सामने अपने पैरों पर पड़ते हुए प्राणबल्लभ को देखकर भी जो नायिका उन्हें बुरा-भला कहती है तथा निषेध करती है, उसे कलहान्तरिता नायिका कहते हैं। उसमें प्रलाप, सन्ताप, ग्लानि, दीर्घनि:श्वास आदि चेष्टाएँ लक्षित होने के कारण उसे कलहान्तरिता कहा जाता है। कलहान्तरिता नायिका का लक्षण यह है-

प्राणेश्वरं प्रणयकोपविशेष-भीतं या
चाटुकारमवधीर्य विशेषवाग्मि:।
सन्तप्यते मदनविर्ह्निर्शिखासमूहैर्वाष्पकुलेह
कलहान्तरिता हिसा स्यात्॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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