गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 329

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

अष्टम: सर्ग:
विलक्ष्यलक्ष्मीपति:

सप्तदश: सन्दर्भ:

17. गीतम्

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माधव आप हमारे 'धव' अर्थात् पति नहीं हैं, पति होते तो क्या वञ्चना करते। यथार्थ में 'मा' अर्थात् श्रीराधा और 'धव' उनके प्राणप्रियतम हैं।

केशव जो प्रकृष्ट वेश-भूषा को धारण करते हैं, सदा ही जिनके केश मुक्त हैं।

सरसीरुहलोचन सदा आनन्द में डूबे हुए होने के कारण अर्द्धनिमीलित नेत्र वाले हैं।

हाय! रातभर जिसने करुणा बरसाई है, उसी के पास जाओ।

यह सुनकर श्रीकृष्ण बोले- मैं तुमसे एक प्राण और एक शरीर हूँ। राधे! मैं सच कहता हूँ कि मैंने किसी दूसरी स्त्री का संग नहीं किया, मेरी आँखें हैं ही लाल रंग की, किसी अंगना के साथ जागरण के कारण नहीं, अलसता से आँखें मुँद रही हैं ॥1॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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