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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:
अथ षोड़ष: सन्दर्भ:
16. गीतम्
श्रीजयदेव-भणित-वचनेन । अनुवाद- श्रीजयदेव कवि विरचित श्रीराधा के विलाप-वचनों के साथ श्रीहरि भी भक्तों के हृदय में प्रवेश करें। पद्यानुवाद बालबोधिनी- जयदेव कवि के द्वारा माधव के उद्देश्य से गाये गये इस प्रबन्ध से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण हृदय में प्रवेश करें। किसके हृदय में? श्रीराधा के हृदय में। साथ ही कर्ण-रन्ध्र द्वारा मेरे कवि जयदेव के, इस प्रबन्ध के पाठकों के तथा श्रोताओं के भावरूपी हृदय-कमल में भी प्रवेश करें। नागर नारायण हरि हृदय में अवस्थित हों। इस प्रकार नारायणमदनायास नाम का सोलहवाँ प्रबन्ध समाप्त हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- अनेन श्रीजयदेव-भणित-वचनेन (श्रीजयदेवोक्त-श्रीराधाया: माधवमुद्दिश्य वचनेत्यर्थ:) हरिरपि [तदेकचित्तानां भक्तानां] हृदयं (चित्तनिकेतनं) प्रविशतु [प्रविष्ट: कर्णरन्ध्रेण स्वानां भावसरोरुहमित्युक्ते:] ॥8॥
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