गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 31

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

Prev.png

वाच: पल्लवयत्युमापतिधर: सन्दर्भशुद्धिं गिरां,
जानीते जयदेवएव शरण: श्लाघ्यो दुरूह-द्रुते।
श्रृंगारोत्तर-सत्प्रमेय- रचनैराचार्य-गोवर्धन-
स्पद्धी कोऽपि न विश्रुत: श्रुतिधरो धोयी कवि-क्ष्मापति:॥4॥[1]


अनुवाद - उमापति धर नामक कोई विख्यात कवि अपनी वाणी को अनुप्रासादि अलंकार के द्वारा सुसज्जित करते हैं। शरण नाम के कवि अत्यन्त क्लिष्ट पदों में कविता का विन्यास कर प्रशंसा के पात्र हुए हैं। सामान्य नायक-नायिका के वर्णन में केवल श्रृंगार रस का उत्कर्ष वर्णन करने में गोवर्धन के समान दूसरा कोई कवि श्रुतिगोचर नहीं हुआ है। कविराज धोयी तो श्रुतिधर हैं। वे जो कुछ भी सुनते हैं, कण्ठस्थ कर लेते हैं। जब ऐसे-ऐसे महान कवि सर्वगुणसम्पन्ना नहीं हो सके, फिर जयदेव कवि का काव्य किस प्रकार सर्वगुणसम्पन्न हो सकता है?

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय - उमापतिधर: (तन्नाामा कवि:) वाच: (वाक्यानि) पल्लवयति, (विस्तारयति; सन्दर्भे वागाड़म्बरं प्रदर्शयति, न तु काव्यगुणयुक्ता: करोति) शरण: (तन्नाामा कवि:) दुरूहद्रुते (दुरूहस्य दुर्वोधस्य सन्दर्भस्य द्रुते शीघ्रवचने) श्लाघ्य: (प्रशंसनीय:) [नतु प्रसादादिगुणयुक्ते]; श्रंंगारोत्तरसत्प्रमेयरचनै: (श्रृंगारोत्तराणि श्रृंगार-रसप्रधानानि सन्ति उत्कृष्टानि यानि प्रमेयाणि प्रबन्धा: तेषां रचनै:) कोऽपि [कवि:] आचार्य-गोवर्धन-स्पर्द्धी तेन तुल्य:) न विश्रुत: (न ज्ञात:) [नतु रसान्तर-वर्णने]; [तथा] कवि-क्ष्मापति: (कविराज:) धोयी (तन्नाामा कवि:) श्रुतिधर: (श्रुत्या श्रवणमात्रेणैव अभ्यासकर्त्ता इत्यर्थ:) नतु [स्वयं कवितारचनायाम्]; परन्तु जयदेव एव [नत्वन्य: कोऽपि कवि:] गिरां (वाचां) सन्दर्भशुद्धिं (विशुद्धग्रन्थनं) जानीते [अथवा दैन्योक्तिरियम्-गिरां सन्दर्भशुद्धिं किं जयदेव एव जानीते? न जानीते एव; यत्र उमापतिधरो वाच: पल्लवयतीत्यादि ॥4॥

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः