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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:
चतुर्दश: सन्दर्भ
14. गीतम्
श्रीजयदेव-भणित-हरि-रमितम् । अनुवाद- कवि जयदेव द्वारा वर्णित यह हरि-रमण-विलास रूप रतिक्रीड़ा सबका कलि-कल्मष अर्थात् कामवासना को शान्त करे। पद्यानुवाद बालबोधिनी- गीतगोविन्द के इस चौदहवें प्रबन्ध का नाम हरिरमितचम्पकशेखर है। इस प्रबन्ध में विपरीत रति का वर्णन है। रति-व्यापार का यह वर्णन अति पवित्र है। यह पाठकों तथा श्रोताओं के कलिदोषजन्य काम-विकार का प्रक्षालन करे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- श्रीजयदेव-भणित-हरि-रमितं (श्रीजयदेवेन भण्तिं यत्र हरिरमितं हरे: रमणं) भक्तानां कलिकलुषं (कामादिकं) परिशमितं जनयतु ॥8॥
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