विषय सूची
श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:
चतुर्दश: सन्दर्भ
14. गीतम्
दयित-विलोकित-लज्जित-हसिता। अनुवाद- दयित श्रीकृष्ण के द्वारा अवलोकित होने पर वह लज्जित होती होगी, हँसती होगी, रतिकाल में रतिरसरसिता होकर कोकिल कलहंसादि के समान मदनविकार सूचक 'सीत्कार' शब्द करती होगी। पद्यानुवाद बालबोधिनी- प्रियतम श्रीकृष्ण जब तृप्त होकर उसकी ओर देखते होंगे, तब वह लज्जित होकर गर्दन झुका लेती होगी, हँसती होगी, रतिरसातिरेक के कारण वह पक्षियों- कोकिल, कलहंस के समान विविध प्रकार की मधुर सीत्कार ध्वनि करती होगी।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- दयित-विलोकित-लज्जित-हसिता (दयितस्य प्रियस्य विलोकितेन वीक्षणेन-लज्जितं लज्जायुक्तं हसितं हास्यं यस्या: तथोक्ता) [तथा] बहुविध कूजित-रति-रस-रसिता (बहुविधं पारावतादिवत् कूजितं यस्यां तादृशी या रति: तस्या रसेन आस्वादेन रसिता रसपूर्णा) ॥5॥
संबंधित लेख
सर्ग | नाम | पृष्ठ संख्या |