गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 274

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:

त्रयोदश: सन्दर्भ

13. गीतम्

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पद्यानुवाद
अथवा आये यहीं हाय पर, छाई अति अँधियारी,
यहाँ-वहाँ क्या मुझे खोजते, भटक रहे वनवारी?
श्रीहरि-चरण-शरण 'कवि जय' की प्रमदा सम मृदुवाणी
भक्तों के भावुक हृदयों में गूँज उठे कल्याणी

बालबोधिनी- श्रीकृष्ण के संकेत स्थल पर न आने के कारण विरहिणी राधिका मन-ही-मन कितने प्रकार के सन्देह-संशय कर रही हैं उनके न आने का कारण क्या हो सकता है? मन: कल्पित सन्देहों को प्रस्तुत करती हुई श्रीराधा कहती है, यह मनोहर वेतस-लतागृह हम दोनों के मिलन का संकेत-स्थान था, फिर उन्हें क्या हो गया? वे क्यों नहीं आये? क्या वे दूसरी नायिका के साथ अभिसार करने चले गये? पर मेरे प्रति उनका अनुराग कम कैसे हो सकता है? मुझे यहाँ ऐसे ही छोड़कर वे अन्यत्र विहार कैसे कर सकते हैं? क्या केलिपरायण और कलापरायण उनके बान्धवों ने उन्हें यहाँ आने से रोककर क्रीड़ावनि में ही रख लिया? यह भी संभव नहीं है, क्योंकि वे अभिसार के समय को किस प्रकार भूल सकते हैं? ऐसा लगता है वे चतुर चूड़ामणि अन्धकार की अधिकता के कारण मुझको प्राप्त न कर सकने के कारण मुझे इधर-उधर ढूँढ़ रहे हों, पर वे तो इस वन में अभिसार के लिए कितनी ही बार आये होंगे! वे परिचित पथ कैसे भूल सकते हैं? यह भी संभव नहीं है। तो क्या वे मुझसे विच्छिन्न होने से क्लान्त होकर चलने में ही असमर्थ हो गये हैं? अथवा चन्द्रोदय के पश्चात् श्रीराधा की दशा कैसी होगी, यह सोचकर विच्छेद दु:ख से कातर होकर यहाँ नहीं आये?

प्रस्तुत पद में शार्दूलविक्रीड़ित छन्द तथा संशय नामक अलंकार है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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