विषय सूची
श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
षष्ठ: सर्ग:
धृष्ट-वैकुण्ठ:
द्वादश: सन्दर्भ
12. गीतम्
बालबोधिनी- महाकवि जयदेव इस श्लोक के द्वारा आशीर्वाद देते हुए इस सर्ग का उपसंहार करते हैं। सायंकाल के अतिथि की प्रशंसा से युक्त श्रीगोविन्द की वाणियों की जय हो। जय-जयकार से श्रीकृष्ण की सर्वोत्कृष्टता सिद्ध होती है। जैसे श्रीकृष्ण ने पथिक के मुँह से नि:सृत श्रीराधा-विषयक बात को छिपाने के लिए पथिक से कहा हे भाई! यहाँ काले सर्प के घर में वटवृक्ष के नीचे क्यों विलाप कर रहे हो? यहाँ से सामने ही दृष्टिगोचर होने वाले आनन्दप्रद नन्द के घर में चले जाओ, जो थोड़ी ही दूर पर स्थित है। जब सखी को लौटने में विलम्ब होता हुआ देखा तो श्रीराधा ने एक दूती को कोई बहाना बनाकर श्रीकृष्ण के समीप भेजा। उस दूती ने सन्ध्या के समय पथिक वेश में श्रीकृष्ण के समीप जाकर श्रीराधा के द्वारा दिये हुए जो संकेत वाक्य कहे थे, उसको गोपन करने के लिए श्रीकृष्ण ने जो प्रशंसायुक्त वाणी कही, उसकी जय हो। इति श्रीगीतगोविन्द में धृष्ट-वैकुण्ठनामक षष्ठसर्ग की बालबोधिनी वृत्ति। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
सर्ग | नाम | पृष्ठ संख्या |