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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
षष्ठ: सर्ग:
धृष्ट-वैकुण्ठ:
द्वादश: सन्दर्भ
12. गीतम्
श्लिष्यति चुम्बति जलधर-कल्पम्। अनुवाद- जलधर के समान प्रतीत होने वाले घने अन्धकार को "हरि आ गये" ऐसा समझकर आलिंगन और चुम्बन करती हैं। पद्यानुवाद बालबोधिनी- जब वह कुछ जलभरे मेघ के समान स्निग्ध नीलकान्ति वाले विपुल अन्धकार को देखती हैं तो उन्हें लगता है- 'श्रीकृष्ण, तुम आ गये हो' और उस स्निग्ध अंधकार को ही अंक में भर लेती हैं और चुम्बन करने लगती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- [पुनश्च अत्यावेशेन] हरि: उपगत: (आयात:) इति [बुद्धा] जलधर-कल्पं (मेघसदृशं) अनल्पं (प्रगाढ़ं) तिमिरं (अन्धकारं) श्लिष्यति (आलिंगति) चुम्बति च ॥6॥
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