विषय सूची
श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
पञ्चम: सर्ग:
आकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष:
एकादश: सन्दर्भ
11. गीतम्
कंसध्वसनधूमकेतु:- कंस नामक असुर के विनाशकारी श्रीकृष्ण धूमकेतु तारे के समान हैं। धूमकेतु एक तारा विशेष है। मान्यता है कि जब यह उदित होता है, तब राजा का विनाश अवश्यम्भावी होता है। श्रीकृष्ण का अवतार कंस के विनाश का सूचक है। धूमकेतु का अन्य अर्थ है- भानु के समान प्रकाशक। श्रीराधा के काम को शान्त करने वाले श्रीकृष्ण धूमकेतु हैं। प्रदोष अर्थात प्रगतो दोषादय:। प्रस्तुत श्लोक में श्लेष, लुप्तोपमा, परिकर तथा वर्णोपमा नामक अलंकारों का समावेश है। शार्दूलविक्रीड़ित छन्द तथा पाञ्चाली रीति है। इस प्रकार श्रीजयदेव प्रणीत गीतगोविन्द काव्य के अभिसारिका वर्णन में 'साकांक्षपुण्डरीकाक्ष' नामक पाँचवाँ सर्ग पूर्ण हुआ। श्रीराधा के आगमन की प्रतीक्षा में पुण्डरीकाक्ष विराजमान हैं ऐसा यह पाँचवाँ सर्ग सबके प्रति आनन्ददायी हो। इति गीतिगोविन्द महाकाव्ये एकादश सन्दर्भे टीकायां बालबोधिनी वृत्ति।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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सर्ग | नाम | पृष्ठ संख्या |