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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
पञ्चम: सर्ग:
आकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष:
एकादश: सन्दर्भ
11. गीतम्
पद्यानुवाद बालबोधिनी- सखी श्रीराधा से कह रही है हे- राधे! इस समय अंधकार है जो अभिसार के लिए उचित समय है। इस अंधकार में अभिसारिकाएँ अपने प्रेमियों से मिला करती हैं। अत: तुम इस अंधकार में उस निभृत कुंज की ओर चलो। सखि, इन नूपुरों को उतार दो, ये तो तुम्हारे शत्रु ही हैं। अति चंचल होने के कारण ये चलने के समय तथा विलास-केलि में ध्वनि उत्पन्न करते हैं, शत्रु के समान अवसर को जाने बिना ही मुखरित हो जाते हैं! ये मंजीर अभीष्ट सिद्धि के प्रतिकूल हैं। अब अपना नील वसन पहन लो। इस अभिसरणीय नील वसन के अवगुण्ठन से तुम्हारा गौर वर्ण इस तिमिर में एकाकार हो जायेगा, श्याममय हो जायेगा, तुम्हारे पथ का अन्धकार और भी बढ़ जायेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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