गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 226

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

पञ्चम: सर्ग:
आकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष:
एकादश: सन्दर्भ
11. गीतम्

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पद्यानुवाद
नाम सहित संकेत ध्वनित कर-कोमल वेणु बजाते।
तव तन चुम्बित पवन-रेणुसे डरको समुद सजाते॥

बालबोधिनी- सखी श्रीराधा जी को स्पष्ट कर रही है कि यदि तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास न हो तो वहाँ से आती हुई श्रीकृष्ण की वंशी की टेर सुन लो, तुम्हारा ही नाम लेकर वह तुम्हें मिलन का संकेत दे रही है। श्रीकृष्ण इसी प्रकार से तुम्हें राह बता रहे हैं। यदि तुम्हें यह आशंका है कि वहाँ जाने पर प्रतारणा होगी, किसी अन्य रमणी के साथ उनका अभिसार होगा तो तुम्हारी शंका निर्मूल है क्योंकि बालू के उन कणों को भी रत्न जानकर वे अति सम्मान कर रहे हैं जो तुम्हारे चरणों के आघात से हवा के साथ उनके पास पहुँचे हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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