गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 20

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

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पद्यानुवाद
मेघ भरित अम्बर अति श्यामल तरु तमालकी छाया,
कान्ह भीरु ले जा राधे! गृह, व्याप्त रातकी माया।
पा निर्देश यह नन्द महरका हरि-राधा मदमाते,
यमुन-पुलिनके कुञ्ज-कुञ्ज में क्रीड़ा करते जाते॥1॥

बालबोधिनी - गीतगोविन्द नामक इस प्रबन्ध में श्रीराधा-माधव की ऐकान्ति की प्रेममयी निकुञ्ज लीला का चित्रण किया गया है। रचनाकार महाकवि श्रीजयदेव गोस्वामी ने श्रीराधामाधव की स्मर केलि-लीला का वर्णन कर उन दोनों की सर्वश्रेष्ठता स्थापित की है। ग्रन्थ कृति के प्रारम्भ में श्रीकविराज जी ने तमालवृक्ष के तम:पुञ्ज द्वारा समाच्छादित कुञ्ज-भवन में श्रीराधा-माधव की प्रविष्टि का चित्रण किया है।

परम प्रेयसी श्रीराधा अपनी सखी के वचनों का स्मरण कर श्रीकृष्ण को साथ लेकर कुञ्ज में प्रवेश कर जो सुख क्रीड़ाएँ करती हैं, उन्हीं को मंगला चरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। ग्रन्थ का प्रतिपाद्य-तत्त्व श्रीराधामाधव की लीलामाधुरी है; अत: यह प्रबन्ध सभी के लिए मंगलदायी और कल्याणकारी है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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