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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
द्वितीय सर्ग
अक्लेश-केशव:
अथ षष्ठ सन्दर्भ
6. गीतम्
बालबोधिनी- दूसरे सर्ग के अन्तिम श्लोक में महाकवि श्रीजयदेव भक्तजनों को आशीर्वाद देते हुए कहते हैं कि विदग्ध श्रीकृष्ण ने गोपियों की चार प्रकार की चेष्टाओं का अपने हृदय में विचार किया, इन चेष्टाओं को देखकर कोई भी मूर्ख आकर्षित हो जाया करता है।
परमविवेकी श्रीकृष्ण ने इन चेष्टाओं का अपने हृदय में विचारकर उन्हें व्यर्थ कर दिया। श्रीराधा की अपेक्षा दूसरी कोई श्रेष्ठ नहीं है, इस प्रकार अपने भक्तों के द्वारा स्तुति किये जाने वाले श्रीकेशव समस्त भक्तों के क्लेशों को दूर करें। प्रस्तुत श्लोक में समुच्चय, आशी: तथा परिकर अलंकार है। शार्दूल विक्रीड़ित छन्द है। इस प्रकार अक्लेश-केशव-कुंजर-तिलक नामक षष्ठ प्रबन्ध वर्णन हुआ है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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