गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 15

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

श्रीश्रीगुरु-गौरांगौ जयत:

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प्रस्तावना

(ढ)

श्रीजयदेव कवि का जीवन चरित्र

कविवर श्रीजयदेव गोस्वामी ने पश्चिम बंगाल के वीर भूमि जिले में प्राय: दस कोस दक्षिण में अजय नदी के उत्तर भाग में स्थित केन्दुबिल्व नामक ग्राम में जन्म ग्रहण किया था। यह केन्दुबिल्व ग्राम साधारणत: केन्दुली के नाम से ही विशेषरूप से प्रचलित है। श्रीजयदेव के पिताजी का नाम भोजदेव और उनकी गर्भधारिणी माता का नाम वामादेवी था। श्रीजयदेव गोस्वामी ने स्वयं ही कहा है-

वर्णितं जयदेवकेन हरेरिदं प्रवणेन।
केन्दुबिल्व-समुद्र सम्भव-रोहिणी-रमणेन॥

जिस प्रकार महाराज विक्रमादित्य एक परम विद्योत्साही और गुणग्राही थे, बंगाधिपति महाराज लक्ष्मणसेन भी उसी प्रकार से विद्वान और गुणियों का समादर करते थे। महाराज विक्रमादित्य की सभा जैसे कालीदास, वररुचि आदि नवरत्नों की शोभा से अलंकृत होती थी, महाराज लक्ष्मण सेन की सभा में उसी प्रकार गोवर्धनाचार्य, जयदेव इत्यादि पञ्चरत्न विराजमान थे।[1] उक्त महाराज की सभा के द्वारदेश में प्रस्तर फलक में जो श्लोक लिखा गया है, उसका पाठकर यह ज्ञात होता है कि महाराज लक्ष्मण सेन की सभा में गोवर्धन, शरण, जयदेव, उमापति और कविराज नामक राज-पण्डित थे। वह इस प्रकार है-

वाच: पल्लवयत्युमापतिधर: सन्दर्भशुद्धिं गिरां।
जानीते जयदेव एव शरणं श्लाघ्यो दुरुह-द्रुते॥
श्रृंगरोत्तर सत्प्रमेय-वचनैराचार्य-गोवर्धन।
स्पर्धी कोऽपि न विश्रुत: श्रुतिधरो धोयी कवि-क्ष्मापति:॥

अत: श्रीगीतगोविन्द के प्रारम्भ में कवि जयदेव गोस्वामी के द्वारा लिखित इस श्लोक में इन सभी राजपण्डितों के नाम उल्लिखित हैं। इनमें उमापतिधर महाराज के प्रधानमंत्री थे। वे सभी पण्डितों का समादर करते थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गोवर्धनश्च शरणो जयदेव उमापति:।
    कविराजश्च रत्नानि समितौ लक्ष्णस्य च॥

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सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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