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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
द्वितीय सर्ग
अक्लेश-केशव:
अथ षष्ठ सन्दर्भ
6. गीतम्
श्रीजयदेव-भणितमिदमतिशय-मधुरिपु-निधुवन-शीलम्।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- इदम् उत्कण्ठित-गोप-वधू-कथितं (उत्कण्ठिताया: कृष्णप्राप्तौ उत्सुकाया गोपवध्वा राधिकाया: कथितं यत्र तत्र) सलीलम् (सविलासम्) अतिशय-मधुरिपुनिधुवन-शीलं (अतिशयेन मधुरिपो: कृष्णस्य निधुवनं सुरतं शीलयति स्मारयतीति तत्र) श्रीजयदेवभणितम् (श्रीजयदेवोक्ति:) [भक्तानां] सुखं वितनोतु (विस्तारयतु) सखिहे.... ॥8॥
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