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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
द्वितीय सर्ग
अक्लेश-केशव:
अथ षष्ठ सन्दर्भ
6. गीतम्
पद्यानुवाद बालबोधिनी- श्रीराधा रतिसुख के अनुभव में डूबकर अलसा गयी तथा श्रीकृष्ण ने अपने नेत्रकमलों को सामान्य रूप से बन्द कर लिये हैं। भ्रमर जैसे एक-एक कर सभी पुष्पों पर बैठकर मधुपान करता है, परन्तु कमलिनी का उत्कर्ष देखकर उसमें अतिशय आसक्त रहता है तथा प्रमत्त होकर मधुपान करते हुए उसी में ही विश्राम करता है, वैसे मधुसूदन पुष्पों के जैसे समस्त गोपियों का मधुपान करने पर भी सबको छोड़कर राधा-कमलिनी में अतिशय आसक्त हैं तथा वहीं उनका विश्राम स्थल है। उसी में ही समस्त प्रकार के रतिसुख का आनन्द अनुभव करते हैं। इस प्रकार श्रीराधा के मन में श्रीकृष्ण की विदग्धता का अनुभव होने पर वह भी अनुरागिणी हो गयी। आज श्रीराधा के मन में श्रीहरि के साथ लीलाविनोद करते हुए पूर्व अनुभूत विषय स्मरण होने से व्याकुल होकर सखी से कहने लगी सखि! उन श्रीकृष्ण से मिला दो ॥7॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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