गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 131

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

द्वितीय सर्ग
अक्लेश-केशव:

5. गीतम्

Prev.png

मणिमय-मकर मनोहर-कुण्डल-मण्डित-गण्डमुदारं।
पीतवसन मनुगत-मुनि-मनुज-सुरासुरवर-परिवारं-
रासे हरिमिह ... ... ॥6॥[1]

अनुवाद- जिनके कपोल-युगल मणिमय मनोहर मकराकृति कुण्डलों के द्वारा सुशोभित हो रहे हैं, जिन्होंने कामिनी जनों के मनोभिलाष को पूर्ण करने में महान उदार भाव अर्थात दक्षिण नायकत्व को धारण किया है, जिन पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण ने अपनी माधुरी का विस्तार कर सुर, असुर, मुनि, मनुष्य आदि अपने श्रेष्ठ परिवार को प्रेमरस में सराबोर कर दिया है, उन श्रीकृष्ण का मुझे बरबस ही स्मरण हो रहा है।

पद्यानुवाद
युग्म कपोल रत्न-मणि मण्डित,
मकर मनोहर कुण्डल लम्बित
सुन्दर पीत वसन परिवेष्टित,
मुनि, सुर, असुर, पद्म-पद पूजित
हरि मूरतका ध्यान,
हो आता अनजान॥

बालबोधनी- श्रीकृष्ण के कानों में लटकने वाले कुण्डल मकराकृति के हैं, जिनसे उनके कपोलद्वय समलंकृत हैं। दक्षिण नायक हैं, पीताम्बर धारण करते हैं। नारदादि मुनि, भीष्मादि मनुष्य, प्रट्टादादि असुर तथा इन्द्रादि देवगण उनका श्रेष्ठ परिवार है। ऐसे श्रीकृष्ण का मुझे स्मरण हो रहा है ॥6॥


Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- सखि, मणिमय-मकर-मनोहर-कुण्डल-मण्डित-गण्डं (मणिमयाभ्यां मणिप्रचुराभ्यां मकराभ्यां मकराकार-मनोहर-कुण्डलाभ्यां मण्डितौ शोभितौ गण्डौ यस्य तम्) [तथा] अनुगत-मुनि-मनुज-सुरासुर-वर-परिवारम् (अनुगता: सौन्दर्यादिना आकृष्टा: मुनि-मनुज-सुरासुराणां वरा: श्रेष्ठा: परिवारा: परिग्रहा: येन तादृशम्) उदारं (महान्तम्) पीत-वसनम् (पीताम्बरम्) [हरिं] मम मन: रासे विहितविलास-मित्यादि ॥6॥

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः