गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 13

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

श्रीश्रीगुरु-गौरांगौ जयत:

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प्रस्तावना

(ठ)

श्रीचैतन्य चरितामृत में श्रीरायरामानन्द संवाद में श्रीरामानन्द के मुख से श्रीमन्‌शचीनन्दन गौरहरि के प्रश्नों के उत्तर में कहा है

प्रभु कहे,-'साध्यवस्तुर अवधि' एइ हय।
तोमार प्रसादे इहा जानिलूँ निश्चय॥
'साध्यवस्तु' 'साधन' बिना केह नाहि पाय।
कृपा करि कह, राय, पावार उपाय॥
राय कहे,-जेइ कहाओ, सेइ कहि वाणी।
कि कहिये भाल-मन्द, किछुइ ना जानि॥
त्रिभुवन-मध्ये ऐछे हय कोन धीर।
जे तोमार माया-नाटे हइबेक स्थिर॥
मोर मुखे वक्ता तुमि, तुमि हओ श्रोता।
अत्यन्त रहस्य, शुन, साधनेर कथा
राधाकृष्णेर लीला एइ अति गूढ़तर।
दास्य-वात्सल्य-भावे ना हय गोचर॥
सबे एक सखीगणेर इहा अधिकार।
सखी हइते हय एइ लीलार विस्तार॥
सखी बिना एइ लीला पुष्ट नाहि हय।
सखी लीला विस्तारिया, सखी आस्वादय॥
सखी बिना एइ लीलाय अन्येर नाहि गति।
सखीभावे जे ताँरे करे अनुगति।
राधाकृष्ण-कुञ्जसेवा-साध्य सेइ पाय।
सेइ साध्य पाइते आर नाहिक उपाय॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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