गिरिवर कैसैं लियौ उठाइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ


गिरिवर कैसैं लियौ उठाइ।
कोमल कर चापति महतारी, यह कहि लेति बलाइ।।
महा प्रलय जल तापर, राख्यौ, एक गोबर्धन भारी।
नैकु नहीं टारयौ नख पर तैं, मेरौ सुत अहँकारी।
कंचन-थार दूब-दधि-रोचन, सजि तमोर लै आई।
हरषिततिलक करति, मुख निरखति, भुज भरि कंठ लगाई।।
रिस करिकै सुरपति चढ़ि आयौ, देतौ ब्रजहिं बहाई।
सूर स्याम सौं कहति जसोदा, गिरिधर बड़ौ कन्हाई।।967।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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