गावत गोपी मधु मृदु बानी ।
जाके भवन बसत त्रिभुवनपति राजा नंद यसोदा रानी ॥1॥
गावत वेद भारती गावत गावत नारदादि मुनि ज्ञानी ।
गावत गुन गंधर्व काल सिव गोकुल नाथ महात्तम जानी ॥2॥
गावत चतुरानन जगनायक गावत शेष सहस्र मुखरासी ।
मन क्रम बचन प्रीति पद अंबुज अब गावत ‘परमानंद’ दासी ॥3॥