गारी होरी देत दिवावत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


गारी होरी देत दिवावत। ब्रज मैं फिरत गोपगन गावत।।
दूध दही के माते डोलै। काहे न हो हो हो हो बोलै।।
बगलनि मैं दाबे पिचकारी। बाँधत फेटै पाग सँवारी।।
रुकि गए बाटनि नारे पैड़े। नव केसरि के माट उलैड़े।।
छज्जनि तै छूटति पिचकारी। रँगि गई बाखरि महर अटारी।।
नाना रंग गए रँगि वागे। बलदाऊ इत उत ह्वै भागे।।
न्हान चले जमुना कै तीर। मनमोहन हलधर दोउ बीर।।
'सूरदास' प्रभु सब सुखदायक। दुर्लभ रूप देखिवै लायक।।2902।।

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