गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 28
यादवों का पाञ्चजन्य उपद्वीप में जाना, दैत्यों की परस्पर मंत्रणा, मयासुर का बल्वल को घोड़ा लौटा देने के लिए सलाह देना, परंतु बल्वल का युद्ध के निश्चय ही अडिग रहना श्रीगर्ग कहते हैं- नृपेंद्र ! प्रात:काल शौचादिकर्म करके यदुनंदन अनिरुद्ध यादवों के साथ ! उसी प्रकार सागर के उस पार गए, जैसे पूर्वकाल में कपियों के साथ श्रीरामचंद्रजी गए थे। वहाँ जाकर उन अनिरुद्ध आदि यादवों ने पाञ्चजन्य उपद्वीप देखा, जिसका विस्तार सौ योजन था। राजेंद्र ! उस उपद्वीप में आसुरी पूरी शोभा पाती थी, जो बीस योजन तक फैली हुई थी। उसमें दैत्यों के समुदाय निवास करते थे। पुंनाग, नागकेसर, चम्पा, कोविदार, निम्ब, जम्बू, कदम्ब, प्रियाल, पनस (कटहल), साल, ताल, मौल श्री, चम्पक तथा मदन नाम वाले वृक्ष एवं पुष्प उस रमणीय नगरी की शोभा बढ़ाते थे। उसमें रत्नों के महल बने हुए थे। यादवों का आगमन सुनकर दुष्ट बल्वल ने महात्मा यादवों की सेना की गणना करने के लिए मायवी मय को भेजा। उसने तोते का रूप धारण करके वहाँ जाकर सब यादवों को देखा और लौटकर अत्यंत विस्मित हो पुरी के भीतर बल्वल से कहा। मय बोला- दैत्यराज ! बलवान वृष्णिवंशी योद्धाओं की गणना कौन कर सकता है ? जहाँ वे प्रद्युम्न पुत्र अनिरुद्ध लाख–लाख करौड़ सैनिकों के साथ सुशोभित हैं। समस्त यादव समुद्र के ऊपर से बाणों से सेतु का निर्माण करके तुम्हारे ऊपर चढ़ आए हैं। राजन देखो, उनकी सेना देवताओं को भी विस्मय में डालने वाली है। दैत्यराज ! मैं बूढ़ा हो गया हूँ, परंतु आज तक सागर के ऊपर बाणों का बना हुआ पुल न तो देखा था और न सुना ही था। आज तुम्हारे सामने ही यह देखने को मिल रहा है। रघुकुल शिरोमणि श्रीराम ने पूर्वकाल में लंका के निकट जो सेतु निर्माण किया था, वह पत्थरों और वृक्षों से बनाया गया था और उनके नाम के प्रताप से पानी के ऊपर प्रस्तर ठहर सके थे। वह सारा सेतु मैंने प्रत्यक्ष देखा ता, परंतु आज जो देखा है, वह तो बहुत ही अद्भुत है। राजन् ! पूर्व कालमें श्रीकृष्ण ने कंस आदि तथा शकुनि आदि दैत्यों को युद्ध में मारा था और समस्त राजाओं को परास्त कर दिया था। श्रीकृष्ण तो साक्षात भगवान हैं। पूर्वकाल में ब्रह्माजी के प्रार्थना करने पर वे अपने भक्तों की रक्षा के लिए गोलोक से भूमि पर पधारे हैं। वे दुष्ट पापियों का विनाश करने के लिए कुशस्थली में विराजमान हैं। इसीलिए अनिरुद्ध आदि महाबली समस्त श्रेष्ठ यादव भीषण, बक तथा अन्य नरेशों को परास्त करके यहाँ आए हैं। श्रीकृष्ण के पुत्र, पौत्र तथा जाति भाई श्रेष्ठ यादव आकाश भी जीतने का हौसला रखते हैं, फिर भूतल पर विजय पाने की तो बात ही क्या ? अत: बल्वल ! तुम मरने से बचे हुए दैत्यों की भलाई और अपने कुल की कुशलता के लिए अनिरुद्ध को घोड़ा लौटा दो। देवद्रोही दैत्यों को सुख मिले, इस उद्देश्य से अनिरुद्ध को घोड़ा देकर श्रीकृष्णचंद्र का भजन करते हुए तपस्या से प्राप्त हुए अपने राज्य को भोगो। इस प्रकार शुभ वचनों से समझाये जाने पर भी बल्वल श्रीकृष्ण से विमुक हो लंबी सांस खींचकर भय से रोष पूर्वक बोला। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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