गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 13
श्रीगर्गजी कहते हैं- ऐसी बात सुनकर साम्ब वहॉं अनत:पुर मे गये। वहाँ माता जाम्बवती को प्रणाम करके उन्होंने सारा अभिप्राय निवेदित किया। उनकी बात सुनकर माता ने विरह की अनुभूति करके बेटे को हृदय से लगा लिया और आशीर्वाद दिया। तदनन्तर समस्त माताओं को नमस्कार करके वे पत्नी के घर में गये। उन्हें आता देख शुभलक्षणा लक्ष्मणा बैठने के लिये आसन दे आंसुओं से कण्ठ अवरूद्ध हो जाने के कारण कुछ भी नहीं बोली। साम्ब ने उसे आश्वासन दे अपना अभिप्राय कह सुनाया। सुनकर विरह की सम्भावना से खिन्नचित हो वह अपने पति से बोली। लक्ष्मणा बोली- पतिदेव ! आपको अनिरूद्ध के अश्व की सदा रक्षा करनी चाहिये। आप यद्ध का अवसर आये तो सम्मुख होकर युद्ध करें। रणभूमि से कभी विमुख न हों। आपके सहस्त्रों भाई हैं और उन सब की सहस्त्रों मानवती स्त्रियॉं हैं। नाथ ! यदि युद्ध में आपकी पराजय सुनकर वे आपकी प्रियतमा होने के कारण मेरी ओर देखकर मुस्करा देंगी तो उस समय दु:ख के कारण मेरी मृत्यु हो जायेगी। लक्ष्मणा की बात सुनकर साम्ब ने हँसते हुए अपनी प्रणवल्लभा से बोले। साम्ब ने कहा- भद्रे ! युद्धभूमि में मेरा सामना करने के लिये यदि सारी त्रिलोकी उमड़ आये तो भी तुम सुनोगी कि मैंने उन सबका विदलन (संहार) कर दिया है। शुभे ! यदि शूरवीर साम्ब रणभूमि मे विमुख हो जाय तो वह अपने पाप से वेद और ब्राह्मणों का निन्दक माना जाये। उस दशा में मैं फिर तुम्हारे इस चन्द्रोपम मुख का दर्शन नही करूँगा। श्रीगर्गजी कहते हैं- इस प्रकार वे अपनी पहली प्रियतमा को आश्वासन दे साम्ब ने दूसरी प्रिया को भी धीरज बँधाया। फिर वे अभिमन्यु और सुभद्रा से मिलकर घर से निकले। धनुष और तलवार ले यात्रा के लिये सुसज्जित साम्ब रथ पर बैठे और यादवों से घिरे हुए उस उपवन में गये, जहाँ अनिरूद्ध विद्यमान थे। तदनन्तर श्रीकृष्ण ने अपने गद आदि समस्त भाइयों को और भानु तथा दीप्तिमान आदि सभी पुत्रों को भेजा। वे सब-के-सब शौर्यसम्पन्न और युद्धकुशल थे। उन्होंने धनुष धारण करके कवच बांध लिया और चतुरंगिनी सेना के साथ करोड़ो की संख्या में वे नगर से बाहर निकले। उनके दिव्य रथ ताल, हंस, मीन, मयूर और सिंह के चिह्नवाले ध्वजों से सुशोभित थे। उन रथों का अंग-प्रत्यंग सुवर्ण मण्डित था। प्रत्येक रथ में चार-चार घोड़े जुते थे। वे सभी रथ बहुत ऊँचे और देवताओं के विमानों के समान सुशोभित थे। उनमें छत्र और चँवर लगे हुए थे। उन रथों के ऊपर सोने के कलश थे, जो सूर्य के समान चमक रहे थे। उनमें जालीदार बन्दनवारें लगायी गयी थी। ऐसे रथों द्वारा श्रीकृष्ण के सभी पुत्र कुशस्थली से बाहर निकले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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