गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 5
राजन ! उधर शची ने जब देखा कि इन्द्र युद्ध में पीठ दिखाकर चले आये, तो वे रोष से आगबबूला हो गयीं और फटकारकर बोलीं- ‘देवेश्वर ! आप देवताओं की विशाल सेना के साथ रहकर माधव के साथ युद्ध कर रहे थे, तथापि उन्होंने अकेले ही रणक्षेत्र में आपको पराजित कर दिया। अत: आपके बल-पराक्रम को धिक्कार है। देवाधम ! तुम चुपचाप तमाशा देखो। मैं स्वयं युद्धस्थल में जाकर श्रीकृष्ण को परास्त करूंगी और पारिजात को छुड़ा लाऊँगी, इसमें संदेह नहीं’। श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन ! ऐसा कहकर क्रोध से भरी हुई शची शीघ्र ही शिविका पर आरूढ़ हो युद्ध की इच्छा से प्रस्थित हुई। फिर समस्त देवता उनके साथ युद्ध के मैदान में गये। शची को आयी देख श्रीकृष्ण के मन में युद्ध के लिये उत्साह नहीं हुआ। तब सत्यभामा के अधर रोष से फड़पने लगे। वे श्रीहरि से उनकी बात सुनकर श्रीकृष्ण ने हंसते हुए सुदर्शन चक्र उनके हाथ में दे दिया और स्वयं पारिजात को गरुड़राज पर रखकर उसे पकड़ लिया। जब हरिप्रिया सत्यभामा क्रोधपूर्वक युद्ध करने पर उतर आयीं, तब ब्रह्माण्ड में सर्वत्र महान कोलाहल मच गया। नरेश्वर ! ब्रह्मा और इन्द्र आदि सब देवता भयभीत हो गये। राजन ! उसी समय इन्द्र की प्रेरणा से देवगुरु बृहस्पतिजी वहाँ आये। आकर उन्होंने युद्ध की इच्छा रखने वाली पुलोमपुत्री शची को रोका। श्रीबृहस्पति बोले- शची ! मेरी बात सुनो। यह अनेक प्रकार की बुद्धि और विचार देने वाली है। श्रीकृष्ण तो साक्षात भगवान हैं और बुद्धिमती सत्यभामा साक्षात लक्ष्मी। देवेन्द्रवल्लभे ! तुम उनके साथ कैसे युद्ध करोगी ? अत: इन्द्र के प्रति अवहेलना छोड़कर घर को लौट चलो। सत्यभामा को पारिजात देकर समस्त देवताओं की भय से रक्षा करो। जिनके भय से हवा चलती है, जिनके डर से आग जलती है जलाती है, जिनके भय से मृत्यु सर्वत्र विचरती है, जिनके डर से सूर्यदेव तपते हैं तथा ब्रह्मा, शिव एवं इन्द्र जिनसे सदा भयभीत रहते हैं, उन श्रीकृष्ण को जो भौमासुर का वध करके यहाँ आये हैं, तुम अच्छी तरह नही जानतीं। श्रीगर्गजी कहते हैं- देवगुरु की यह बात सुनकर शची लज्जित हो सत्यभामा और श्रीकृष्ण को नमस्कार करके अपने-आप को धिक्कारती हुई घर को लौट गयीं। तत्पश्चात लज्जित हुए इन्द्र को नमस्कार करते देख श्रीकृष्णप्रिया सत्यभामा ने कहा- ‘देवेन्द्र ! अपने हाथ से वज्र के निकल जाने से लज्जा का अनुभव न करो। द्वन्द्व-युद्ध में दो में से एक की पराजय अवश्यम्भावी है’। उनका यह कथन सुनकर पाकशासन बोले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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