गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 2
श्री बलभद्र जी के अवतार की तैयारी प्राडविपाक मुनि ने कहा- इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर हजार मुखवाले अनन्त जाने के लिये तैयार होकर अपनी सभा में जाकर विराजित हुए। उसी समय सिद्ध, चारण और गन्धर्वों ने आकर अत्यन्त विनीत भाव से सिर झुकाकर उन्हें सब ओर से नमस्कार किया। इसके बाद ताल के चिह से सुशोभित ध्वजा वाले दिव्य रथ में घोड़े जोतकर सुमति नामक सारथि उनके सम्मुख उपस्थित हुआ। शत्रु की सेना का विदारण करने वाला ‘मुसल’ दैत्यों का कचूमर निकालने वाला ‘हल’ और ब्रह्ममय नामक ‘कवच’ भी उनके सामने आकर उपस्थित हो गया। तदनन्तर वहाँ सब के देखते-देखते बलभद्रजी की सभा में श्रीशेषजी रमा वैकुण्ठ से पधारे। उनके एक सहस्त्रफनों पर मुकुट सुशोभित थे। सिद्ध चारणगण तथा पाणिनि और पतज्जलि आदि मुनि उनकी स्तुति कर रहे थे। ऐसे वे शेषजी आकर स्तुति करके संकर्षण के श्रीविग्रह में विलीन हो गये। उसके बाद अजित वैकुण्ठ से सहस्र वदन शेषजी का वहाँ शुभागमन हुआ। वे अजैकपाद, अहिर्बुध्रय, बहुरूप, महद् आदि रुद्रों से घिरे हुए थे। भयंकर प्रेत और विनायक आदि उनके चारों ओर फैले थे। बलराम सभा में आकर शेष नाग ने उनका स्तवन किया और स्तवन करने के पश्चात् वे उन्हीं के शरीर में विलीन हो गये। तदनन्तर श्वेतद्वीप से कुमुद और कुमुदाक्ष आदि प्रधान पार्षदों के द्वारा सेवित, हजार फनों के ऊपर विराजमान मुकुटों से सुशोभित, नीलाम्बरधारी, श्वेत पर्वत के समान प्रभाव वाले, नील कुन्तल की कान्ति से मण्डित, भयंकर रूप वाले शेषजी पधारे और वे भी सबके देखते-देखते अनन्त के देह में विलीन हो गये। फिर उसी समय इलावृतवर्ष से शेषजी आये। भगवती पार्वती की दासी करोड़ों स्त्रियों के यूथ उनकी सेवा कर रहे थे। मुकुट-मण्डित हजार मुखों वाले शेषजी चमचमाते हुए किरीट, कुण्डल और बाजूबंद से सुशोभित थे। सभा में आकर वे भी भगवान अनन्त के श्रीविग्रह में प्रवेश कर गये। तदनन्तर पाताल के बत्तीस हजार योजन नीचे शेषजी आये। वे हजार मुखवाले शेष जी ‘भगवान की तामसी’ कला से सम्पन्न थे। उन्होंने अनन्त सूर्यों के समान प्रकाशमान किरीट धारण कर रखा था। व्यास, पराशर, सनक, सनन्दन, सनत्कुमार, नारद, सांख्यायन, पुलस्त्य, बृहस्पति और मैत्रेय आदि महर्षियों की संनिधि से उनकी अपार शोभा हो रही थी। वासुकि, तक्षक, कम्बल, अश्वतर और देवदत्तादि नागराज उन्हें चंवर डुला रहे थे। कस्तुरी, अगर, केसर और चन्दन के द्वारा अनुलिप्त बहुत-सी नागकन्याएं उनकी सेवा कर रही थी। सिद्ध, चारण, गन्धर्व और विद्याधरों के द्वारा उनका यशोगान हो रहा था। हाटकेश्वर, त्रिपुर, बल, कालकेय, कलि और निवातकवचादि दैत्य उनके अनुयायी होकर आगे-आगे चल रहे थे। ग्यारह रुद्र व्यूहकार से उनके आगे-आगे और कस्तूरी मृग, कामधेनु तथा वरुण उनकी पीछे चल रहे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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