गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 20
श्रीराधा और श्रीकृष्ण के परस्पर श्रृंगार-धारण, रास, जलविहार एवं वनविहार का वर्णन श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! तदनंतर मनोहर श्यामसुन्दर श्रीहरि जलक्रीड़ा समाप्त करके समस्त गोपांगनाओं के साथ गोवर्धन पर्वत को गये। उस पर्वत की कन्दरा में रत्नमयी रासेश्वरी श्रीराधा के साथ साक्षात श्रीहरि ने रासनृत्य किया। वहाँ पुष्पों से सुसज्जित रम्य सिंहासन पर दोनों प्रिया-प्रियतम श्रीराधा-माधव विराजमान हुए, मानो किसी पर्वत पर विद्युत-सुन्दरी और श्याम-घन एक साथ सुशोभित हो रहे हों। वहाँ सब सखियों ने बड़ी प्रसन्नता के साथ स्वामिनी श्रीराधा का श्रृंगार किया। चन्दन, केसर, कस्तूरी आदि से तथा महावर, इत्र, अरगजा और काजल तथा सुगन्धित पुष्प-रसों से कीर्तिकुमारी श्रीराधा की विधिपूर्वक अर्चना करके साक्षात श्रीयमुना ने उन्हें नूपुर धारण कराया। जहुनन्दिनी गंगा ने मंजीर नामक दिव्य भूषण अर्पित किया। श्रीरमा ने कटि प्रदेश में किंकिणी-जाल पहिनाया। श्रीमधुमाधवी ने कण्ठ में हार अर्पित किया। विरजा ने कोटि चन्द्रमाओं के समान उज्ज्वल एवं सुन्दर चन्द्रहार धारण कराया। ललिता ने मणिमण्डित कुंच की पहनायी। विशाखा ने कण्ठभूषण धारण कराया। चन्द्रानना ने रत्न मयी मुद्रिकाएँ अर्पित कीं। एकादशी की अधिष्ठात्री देवी ने श्रीराधा को रत्न-जटित दो कंगन भेंट किये। शतचन्द्रानना सखी ने रत्नमय भुजकंकण (बाजूबन्द, बिजायठ, जोसन और झबिया आदि) दिये। साक्षात मधुमती ने दो अंगद भेंट किये, जिनमें जड़े हुए रत्न उद्दीप्त हो रहे थे। बन्दी ने दो ताटंक (तरकियाँ) और सुखदायिनी ने दो कुण्डल दिये। सखियों में प्रधान आनन्दी ने श्रीराधा को भालतोरण भेंट किया। पद्मा ने चन्द्रकला के समान चमकने वाली माथे की बिन्दी (टिकुली) दी। सती पद्मावती ने नासिका में मोती की बुलाक पहना दी, जो थोड़ी-थोड़ी हिलती रहती थी। राजन ! सुन्दरी चन्द्रकांता सखी ने श्रीराधा को प्रात:कालिक सूर्य की कांति से युक्त मनोहर शीशफूल अर्पित किया। सुन्दरी ने चूड़ामणि तथा प्रहर्षिणी ने रत्नमयी वेणी प्रदान की। वृन्दावनाधीश्वरी वृन्दादेवी ने श्रीराधा को करोड़ों बिजलियों के समान विद्योतमान चन्द्र-सूर्य नामक दो आभूषण भेंट किये। इस प्रकार श्रृंगार धारण करके श्रीराधा का रूप दिव्य ज्योति से उद्भासित हो उठा । राजन ! उनके साथ गिरिराज पर श्रीहरि दक्षिणा के साथ यज्ञनारायण की भाँति सुशोभित हुए। मिथिलेश्वर ! जहाँ रास में श्रीराधा ने श्रृंगार धारण किया, गोर्वधन पर्वत पर वह स्थान ‘श्रृंगार मण्डल’ के नाम से विख्यात गो गया। तदनंतर श्रीकृष्ण अपनी प्रिया गोपसुन्दरियों के साथ चन्द्र सरोवर पर गये। उसके जल में उन्होंने हथिनियों के साथ गजराज की भाँति विहार किया। वहाँ साक्षात चन्द्रमा ने आकर स्वामिनी श्रीराधा और श्यामसुन्दर श्रीहरि को दो सुन्दर चन्द्रकांतमणियाँ तथा दो सहस्रदल कमल भेंट किये। तत्पश्चात् साक्षात श्रीहरि कृष्ण वृन्दावन की शोभा निहारते हुए लता वल्लरियों से व्याप्त बहुलावन में गये। वहाँ सम्पूर्ण सखीजनों को पसीने से भींगा देख वंशीधर ने ‘मेघमल्लार’ नामक राग गाया। फिर तो वहाँ उसी समय बादल घिर आये और जल की फुहारें बरसाने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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