विरह-पदावली -सूरदास
(214) (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- सखी!) उन देशों में (जहाँ श्यामसुन्दर रहते हैं) क्या मेघ नहीं गरजते, अथवा कृष्णचन्द्र ने प्रसन्नता से इन्द्र को ही आग्रहपूर्वक (वर्षा करने से) मना कर दिया और सर्पों ने (वहाँ के) मेढकों खा लिया (वहाँ मेढ़क नहीं बोलते)? अथवा बगुलों ने उस देश का मार्ग छोड़ दिया और वहाँ के घरों में (वर्षा की) बूँदों का प्रवेश नहीं होता? क्या वहाँ के वनों में ब्याधों ने पपीहों, मयूरों और कोयलों को विशेष रूप से (ढूँढ-ढूँढ़कर) मार डाला? अथवा उन सुन्दर देशों में युवतियों झूला नहीं झूलतीं और उनको सखियाँ (उन्हें झुलाती हुई) गीत नहीं गातीं? (इनमें से कोई बात होती तो उससे मोहन को हमारी स्मृति हो आती।) हाय! इधर कोई पथिक भी (तो वर्षा के कारण) आता-जाता नहीं। (अब) स्वामी के (पास भेजने के) लिये किससे (यहाँ आने का) संदेश कहूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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