विरह-पदावली -सूरदास
राग सारंग (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) श्यामसुन्दर! तुमने मुझसे मुँह क्यों फेर लिया (मेरी उपेक्षा क्यों कर दी)? प्रियतम! जब तुम्हीं ने मेरी उपेक्षा कर दी तो दूसरे किसी को किन शब्दों में बुरा-भला कहूँ ? सखी! मिलन के बाद वियोग की पीड़ा तो सीता और राम हि ठीक जाते हैं। सखी! मिलन के बाद वियोग की पीड़ा को दूध और पानी हृदय में रखते हैं (पानी के जलने पर दूध उफनकर अग्नि में गिरने लगता है)। मिलन के बाद वियोग की पीड़ा दारुण होती है, (उसे) कहने से कोई नहीं मानेगा। सखी! मिलन के बाद वियोग की पीड़ा तो जिसे वियोग हुआ हो, वही समझ सकता है। श्रीरामचन्द्र और महाराज दशरथ का वियोग हुआ (तो महाराज दशरथ ने) एक क्षण में प्राण त्याग दिये। श्रेष्ठ वृक्ष से अलग होकर गिरा हुआ पत्ता फिर अपने उस स्थान पर नहीं लगता। जीव (रूपी) हंस शरीर (रूपी) घट से वियुक्त होने पर फिर शरीर में नहीं आता; किंतु मैं अपराधिनी (पापिनी) जीवित (ही अपने प्रियतम से) वियुक्त हो गयी (मरी नहीं); क्योंकि बिछुड़ा हुआ (कोई) जीता नहीं। संगीत के स्वर से वियुक्त होने पर मृग (मर जाता है), जल से बिछुड़ने पर मछली (मर जाती है) और पतिंगा (प्रेम के कारण दीपक में) जलकर भस्म हो जाता है। (इसी प्रकार) सखी! श्यामसुन्दर के वियोग में मेरा शरीर जलकर अत्यन्त साँवला (काला) हो गया है। बार-बार गर्जना करते हुए बादल उमड़ आये हैं और बूँदों की वर्षा करने लगे हैं। (ऐसी दशा में) एक ओर के (एकांगी) प्रेम का, बताओ तो, कैसे निर्वाह हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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