ऊधौ हरि कुबिजा के मीत भए -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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(ऊधौ) हरि कुबिजा के मीत भए।
जे जे सुख कीन्हे उन हम सँग, ते सब भूलि गए।।
सुमिरि सुमिरि गुन ग्राम स्याम के, बहु दुख होत नए।
अवधि आस सोचत दिन बीतत, बिरहा सरनि हए।।
बूड़त छाँड़ि बिरह बन महियाँ, मधुबन जाइ छए।
ऐसे भाग हमारे सजनी, कंतहि छीनि लए।।
हम अनजान हीन मति भोरी, कत उन जान दए।
अब कह होत सोच किऐ सूरज, कठिन वियोग ठए।। 170 ।।

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