ऊधौ हमहिं कहा समुझावहु।
पसु पंछी सुरभी ब्रज कौ सब, देखि स्रवन सुनि आवहु।।
बिन न चरत गो, पिवत न सुत पय, ढूँढत वन बन डोलै।
अलि कोकिल दै आदि विहगम, भाँति भयानक बोलै।।
जमुना भई स्याम स्यामहिं बिनु, इंदु छीन छय रोगी।
तरुवर पत्र बसन न सँभारत, विरह बृच्छ भए जोगी।।
गोकुल के सब लोग दुखित है, नीर बिना ज्यौ मीन।
'सूरदास' प्रभु प्रान न छूटत, अवधि आस मैं लीन।।3798।।