ऊधौ हम हरि कत बिसराए।
एक द्दौस वृदाबन भीतर, कर करि पत्र डसाए।।
सुमिरि सुमिरि गुन ग्राम स्याम के, नैन सजल ह्वै आए।
बिछुरे पलक किते दिन बीते, प्रीतम भए पराए।।
विकल पंथ जोवति हम निसि दिन, कित विरहिनि बिरमाए।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे मिलन बिनु, मदन के ताप सताए।।3632।।