ऊधौ हम दूबरी वियोग।
प्रीतम हते सो उठि गये मधुवन रहे बटाऊ लोग।।
जो तुम बूझहु व्यथा हामरी, कहे बनै तुम आगै।
देह बिहारे सिंगारे न भावै, मन तरसै हरि काजै।।
कारी घटा देखि अँधियारी, सारँग सब्द न भावै।
दिवस रैनि मैं विरह सतावै, कब गुपाल घर आवै।।
'सूरदास' स्वामी मनमोहन, अब करि गए अनाथ।
मन क्रम बचन उहाँइ बसत हैं, जहाँ बसत जदुनाथ।।3765।।