ऊधौ हम दूबरी वियोग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग भोपाली


ऊधौ हम दूबरी वियोग।
प्रीतम हते सो उठि गये मधुवन रहे बटाऊ लोग।।
जो तुम बूझहु व्यथा हामरी, कहे बनै तुम आगै।
देह बिहारे सिंगारे न भावै, मन तरसै हरि काजै।।
कारी घटा देखि अँधियारी, सारँग सब्द न भावै।
दिवस रैनि मैं विरह सतावै, कब गुपाल घर आवै।।
'सूरदास' स्वामी मनमोहन, अब करि गए अनाथ।
मन क्रम बचन उहाँइ बसत हैं, जहाँ बसत जदुनाथ।।3765।।

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