ऊधौ सुनहु नैकु जो बात।
अबलनि कौ तुम जोग सिखावत, कहत नहीं पछितात।।
ज्यौ ससि बिना मलीन कुमुदिनी, रवि विनुही जलजात।
त्यौ हम कमलनैन बिनु देखे, तलफि तलफि मुरझात।।
जिन स्रवननि मुरली सुर अँचयौ, मुद्रा सुनत डरात।
जिन अधरनि अमृत फल चाख्यौ, ते क्यौ कटु फल खात।।
कुंकुम चंदन घसि तन लावतिं, तिहिं न विभूति सुहात।
'सूरदास' प्रभु बिनु हम यौ है, ज्यौं तरु जीरन पात।।3922।।