ऊधौ मौन साधि रहे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


ऊधौ मौन साधि रहे।
जोग कहि पछितात मन मन, बहुरि कछु न कहे।।
स्याम को यह नहीं बूझै, अतिहि रहै खिसाइ।
कहा मैं कहि कहि लजानौ, नार रह्यौ नवाइ।।
प्रथम ही कहि वचन एकै, रह्यौ गुरु करि मानि।
‘सूर’ प्रभु मोकौ पठायौ, यहै कारन जानि।।3882।।

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