ऊधौ विरहौ प्रेम करै।
ज्यौ बिनु पुट पट गहत न रँग कौं, रंग न रसै परै।।
ज्यौ घर दहै बीज अंकुर गिरि, तौ सत फरनि फरै।
ज्यौ घट अनल दहत तन अपनौ, पुनि पय अमी भरै।।
ज्यौ रन ‘सूर’ सहै सर सन्मुख, तौ रवि रथहुँ अरै।
‘सूर’ गुपाल प्रेमपथ चलि करि, क्यौ दुख सुखनि डरै।।3986।।