ऊधौ निरगुनहिं कहत तुमही सो लेहु।
सगुन मूरति नंदनंदन, हमहिं आनि देहु।।
अगम पंथ परम कठिन, गौन तहाँ नाहिं।
सनकादिक भूलि फिरे, अबला कहँ जाहिं।।
पंच तत्त्व प्रकृति परे, अपर कैसै जानी।
मन बच अरु कर्म रहित, बेदहु की वानी।।
कहिऐ जो निबहे की, अकथ न कहुँ सोही।
‘सूर’ स्याम मुख सुचद, जुवति नलिनि मोही।।3899।।