ऊधौ तुम जु निकट के वासी।
यह परमारथ बूझि कहौ किन, नाम बड़ौ की कासी।।
जोग न ज्ञान ध्यान अवराधन, साधन मुक्ति उदासी।
आन प्रकार कहा रुचि मानहिं, जे गोपाल उपासी।।
परमारथी जहाँ लौ जेते, विरहिनि के दुखदाई।
'सूरदास' प्रभु रँगी प्रेम रँग, जारहिं जोग सगाई।।3669।।