ऊधौ काहे कौ भक्त कहावत।
जु पै जोग लिखि पठवौ हमकौ, तुमहुँ न भस्म चढ़ावत।।
श्रृगी मुद्रा भस्म अधारी, हमही कहा सिखावत।
कुबिजा अधिक स्याम की प्यारी, ताहि नहीं पहिरावत।।
यह तौ हमकौ तबहि न सिखयौ, जब तै गाइ चरावत।
'सूरदास' प्रभु कौ कहियौ अब, लिखि लिखि कहा पठावत।।3812।।