ऊधौ कहियै बात सोहती।
जाहि ज्ञान सिखवन तुम आए, सो कहि ब्रज मैं को हती।।
अंतहु सिख तुम सुनहु हमारी, कहियत बात विचारि।
फुरत न बचन कछू कहिबे कौ, रहे सोचि पचि हारि।।
देखियत हौ करुना की मूरति, सुनियत हौ पर पीरक।
सोइ करौ ज्यौ मिटै हृदै कौ दाहु, परै उर सीरक।।
राजपथ तै टारि बतावत, ऊजर कुचल कुपैड़ौ।
'सूरदास' सो समाइ कहाँ लौ, छेरी बदन कुम्हैड़ौ।।3925।।