ऊधौ कहँ की प्रीति हमारै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग आसावरी


 
ऊधौ कहँ की प्रीति हमारै। अजहु रहत तन हरि के सिधारै।।
छिदि छिदि जात विरह सर मारै। पुरि पुरि आवत अवधि बिचारै।।
कटत न हृदय संदेस तुम्हारै। कुलिस तै कठिन धुकत दोउ तारे।।
बरषत नैन महा जल धारैं। उर पषान बिदरत न बिदारैं।।
जीवन मरन भए दोउ भारे। कहियत ‘सूर’ लाज पति हारे।।3622।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः