ऊधौ कहँ की प्रीति हमारै। अजहु रहत तन हरि के सिधारै।।
छिदि छिदि जात विरह सर मारै। पुरि पुरि आवत अवधि बिचारै।।
कटत न हृदय संदेस तुम्हारै। कुलिस तै कठिन धुकत दोउ तारे।।
बरषत नैन महा जल धारैं। उर पषान बिदरत न बिदारैं।।
जीवन मरन भए दोउ भारे। कहियत ‘सूर’ लाज पति हारे।।3622।।