ऊधौ और कछू कहिबै कौं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग घनाश्री


  
ऊधौ और कछू कहिबै कौं ?
मन मानै सोऊ कहि डारौ, हम सब सुनि सहिबे कौं।।
यह उपदेस आजु लौ ऐसौ, काननि सुन्यौ न देख्यौ।
नीरस कटुक तपत अति दारुन, चाहत हम उर लेख्यौ।।
निसि दिन बसत नैकु नहिं निकसत, हृदय मनोहर ऐन।
याकौ यहाँ ठौर नाही है, लै राखौ जहँ चैन।।
ब्रजवासी गोपाल उपासी, हमसौ बातै छाँड़ि।
‘सूर’ जोगधन राखि मधुपुरी, कुबिजा के घर गाड़ि।।3518।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः