ऊधौ इक पतिया हमरौ लीजै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कल्यान


ऊधौ इक पतिया हमरौ लीजै।
चरनलागि गोविंद सौ कहियौ, लिखौ हमारौ दीजै।।
हमतौ कौन रूप गुन आगरि, जिहिं गुपाल जू रीझै।
निरखत नैन नीर भरि आए, अरु कचुकि पट भीजै।।
तलफत रहतिं मीन चातक ज्यौ, जल बिनु तृषा न छीजै।
अति व्याकुल अकुलाति विरहिनी, सुरति हमारी कीजै।।
अँखियाँ खरी निहारतिं मधुबन, हरिबिनु व्रज बिष पीजै।
‘सूरदास’ प्रभु कबहि मिलैंगे, देखि देखि मुख जीजै।।4064।।

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