ऊधौ! प्रिय तें कहियो -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग मधुवती - धमार ताल


ऊधौ ! प्रिय तें कहियो जाय।
है बाहर की बात जदपि यह, पै सुनियो मन लाय
ऊधौ कूँ पठाय सुधि लीन्हीं, पठ‌ई निज कुसलात।
या तें अति सुख भयौ हृदय में, नहिं आनंद समात॥
कंस मारि, बसुदेव-देवकी कूँ जो तुम सुख दीन्हौ।
उग्रसेन कूँ राज दियौ सो सब ही अति भल कीन्हौ॥
वृंदावन तजि बसे जाय मथुरा हो सत्ताधारी।
सुखी देखि यातें तुम कूँ हम सुखी भर्ईं अति भारी॥
जदपि बियोग तुहारो दुःसह, हृदयँ आग भभकावत।
पै तुम्हरौ मुख सुखी देख वह रस-सुखमयी सुहावत॥
कुबरी तें करि नेह प्रान-धन ! जो तुम छिन सुख पायौ।
हमरे मन उमग्यौ सुख-सागर भयौ देखि मन भायौ॥
धन्य कूबरी नमन-जोग नित, बनी जु प्रिय-सुख-साधन।
हम तो चरन-सेविका ता की, करैं समुद आराधन॥
सुखी रहौ तुम प्राननाथ ! नित एक यही हम चाहैं।
जो तुम्हरे सुख के कारन हों, तिन कूँ सदा सराहैं॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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