ऊदाबाई—थाँने बरजबरज मैं हारी, भाभी, मानो बात हमारी ।
राणे रोस कियो थाँ ऊपर, साधों में मत जारी ।
कुल को दाग लगै छै भाभी, निंदा होरही भारी ।
साधों रे सँग बन बन भटको, लाज गमाई सारी ।
बड़ा घर थे जनम लियो छै, नाचो दे दे तारी ।
बर पायो हिंदवाणै सूरज, थे कांई मनधारी ।
मीराँ गिरधर साध सँग तज, चलो हमारी लारी ।
मीराँबाई—मीराँ बात नहीं जग छानी, ऊदा समझा सुघर सयानी ।
साधू मात पिता कुल मेरे, सजन सनेही ग्यानी ।
संत चरण की सरण रैनदिन, सत्त कहत हूँ बानी ।
राणाने समझावो जावो, मैं तो बात न मानी ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, संताँ हाथ बिकानी ।
ऊदाबाई—भाभी बोलो बचन विचारी ।
साधो की संगत दुख भारी, मानो बात हमारी ।
छापा तिलक गलहार उतारो, पहिरो हार हजारी ।
रतन जड़ित पहिरो आभूषण, भोगो भोग अपारी ।
मीराजी थे चलो महल में, थाँने सोगन म्हारी ।
मीरांबाई—भाव भगत भूषण सजे, सील संतों सिंगार ।
ओढी चूनर प्रेम की, गिरधर जी भरतार ।
ऊदाबाई मन समझ, जावो अपने धाम ।
राज पाट भोगो तुम्हीं, हमें न तासूँ काम ।।30।।[1]