उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना

महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत आठवें अध्याय में संजय ने उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

दोनों पक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना

संजय कहते हैं- जब रात व्यतीत हो गयी, तब राजा दुर्योधन ने आपके समस्त सैनिकों से कहा- महारथीगण कवच बाँधकर युद्ध के लिये तैयार हो जायं। राजा का यह अभिप्राय जानकर सारी सेना युद्ध के लिये सुसज्जित होने लगी। कुछ लोगों ने तुरन्त ही रथ जोत दिये। दूसरे चारों ओर दौड़ने लगे। हाथी सुसज्जित किये जाने लगे। पैदल सैनिक कवच बाँधने लगे तथा अन्य सहस्रों सैनिकों ने रथों पर आवरण डाल दिये। प्रजानाथ! उस समय सब ओर से भाँति-भाँति के वाद्यों की गम्भीर ध्वनि प्रकट होने लगी। युद्ध के लिये उद्यत योद्धाओं और आगे बढ़ती हुई सेनाओं का महान कोलाहल सुनायी देने लगा। भारत! तत्पश्चात् मरने से बची हुई सारी सेनाएँ मृत्यु को ही युद्ध से लौटने का निमित्त बनाकर प्रस्थान करती दिखायी दीं। समस्त महारथी मद्रराज शल्य को सेनापति बनाकर और सारी सेना को अनेक भागों मे विभक्त करके भिन्न-भिन्न दलों में खडे़ हुए।

तदनन्तर आपके सम्पूर्ण सैनिक कृपाचार्य, कृतवर्मा, अश्वत्थामा, शल्य, शकुनि तथा बचे हुए अन्य नरेशों ने राजा दुर्योधन से मिलकर आदरपूर्वक यह नियम बनाया- हम लोगों में से कोई योद्धा अकेला रहकर किसी तरह भी पाण्डवों के साथ युद्ध न करे। जो अकेला ही पाण्डवों के साथ युद्ध करेगा अथवा जो पाण्डवों के साथ जूझते हुए वीरों को अकेला छोड़ देगा, वह पाँच पातकों और उपपातकों से युक्त होगा। आज आचार्यपुत्र अश्वत्थामा शत्रुओं के साथ अकेले युद्ध न करें। हम सब लोगों को एक साथ होकर एक दूसरे की रक्षा करते हुए युद्ध करना चाहिये। ऐसा नियम बनाकर वे सब महारथी मद्रराज शल्य को आगे करके तुरन्त ही शत्रुओं पर टूट पड़े। राजन! इसी प्रकार उस महासमर में पाण्डव भी अपनी सेना का व्यूह बनाकर सब ओर से युद्ध के लिये उद्यत हो कौरवों पर चढ़ आये। भरतश्रेष्ठ! वह सेना विक्षुब्ध महासागर के समान कोलाहल कर रही थी। उसके रथ और हाथी बड़े वेग से आगे बढ़ रहे थे, मानो किसी महासमुद्र में ज्वार उठ रहा हो।[1]

दोनों सेनाओं की रणभूमि में उपस्थिति

धृतराष्ट्र बोले- संजय! मैंने द्रोणाचार्य, भीष्म तथा राधापुत्र कर्ण के वध का सारा वृत्तान्त सुन लिया है। अब पुनः मुझे शल्य तथा मेरे पुत्र दुर्योधन के मारे जाने का सारा समाचार कह सुनाओ। संजय! रणभूमि में राजा शल्य धर्मराज के द्वारा कैसे मारे गये तथा भीमसेन ने मेरे महाबाहु पुत्र दुर्योधन का वध कैसे किया? संजय ने कहा- राजन! जहाँ हाथी, घोडे़ और मनुष्यों के शरीरों का महान संहार हुआ था, उस संग्राम का मैं वर्णन करता हूँ; आप सुस्थिर होकर सुनिये। माननीय नरेश! द्रोणाचार्य, भीष्म तथा सूतपुत्र कर्ण के मारे जाने पर आपके पुत्रों के मन में यह प्रबल आशा हो गयी कि शल्य रणभूमि में सम्पूर्ण कुन्तीकुमारों का वध कर डालेंगे। भारत! उसी आशा को हृदय में रखकर आपके पुत्रों को कुछ आश्वासन मिला और वे समरांगण में महारथी मद्रराज शल्य का आश्रय ले अपने-आपको सनाथ मानने लगे। राजन! कर्ण के मारे जाने से प्रसन्न हुए कुन्ती के पुत्र जब सिंहनाद करने लगे, उस समय आपके पुत्रों के मन में बड़ा भारी भय समा गया। महाराज! तब प्रतापी महारथी मद्रराज शल्य ने उन योद्धाओं को आश्वासन दे समृद्धिशाली सर्वतोभद्रनामक व्यूह बनाकर भारनाशक, अत्यन्त वेगशाली और विचित्र धनुष को कँपाते हुए सिंधी घोड़ों से युक्त श्रेष्ठ रथ पर आरूढ़ हो पाण्डवों पर आक्रमण किया।[1]

राजाधिराज! शल्य के रथ पर बैठा हुआ उनका सारथि उस रथ की शोभा बढ़ा रहा था। उस रथ से घिरे हुए शत्रुसूदन शूरवीर राजा शल्य आपके पुत्रों का भय दूर करते हुए युद्ध के लिये खडे़ हो गये। प्रस्थानकाल में कवचधारी मद्रराज शल्य उस सैन्यव्यूह के मुखस्थान में थे। उनके साथ मद्रदेशीय वीर तथा कर्ण के दुर्जय पुत्र भी। व्यूह के वामभाग में त्रिगर्तों से घिरा हुआ कृतवर्मा खड़ा था। दक्षिण पार्श्‍व में शकों और यवनों की सेना के साथ कृपाचार्य थे और पृष्ठभाग में काम्बोजों से घिरकर अश्वत्थामा खड़ा था। मध्यभाग में कुरुकुल के प्रमुख वीरों द्वारा सुरक्षित दुर्योधन और घुड़सवारों की विशाल सेना से घिरा हुआ शकुनि भी था। उसके साथ महारथी उलूक भी सम्पूर्ण सेनासहित युद्ध के लिये आगे बढ़ रहा था। महाराज! शत्रुओं का दमन करने वाले महाधनुर्धर पाण्डव भी सेना का व्यूह बनाकर तीन भागों में विभक्त हो आपकी सेना पर चढ़ आये। (उन तीनों के अध्यक्ष थे-) धृष्टद्युम्न, शिखण्डी और महारथी सात्यकि। इन लोगों ने युद्धस्थल में शल्य की सेना का वध करने के लिये उस पर धावा बोल दिया। अपनी सेना से घिरे हुए भरतश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर शल्य को मार डालने की इच्छा से उन पर ही आक्रमण किया। शत्रुसेना का संहार करने वाले अर्जुन महाधनुर्धर कृतवर्मा और संशप्तकगणों पर बड़े वेग से आक्रमण किया। राजेन्द्र! भीमसेन और महारथी सोमकगणों ने युद्ध में शत्रुओं का संहार करने की इच्छा से कृपाचार्य पर धावा बोल दिया। सेनासहित माद्रीकुमार नकुल और सहदेव युद्धस्थल में अपनी सेना के साथ खडे़ हुए महारथी शकुनि और उलूक का सामना करने के लिये उपस्थित थे। इसी प्रकार रणभूमि में नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लिये क्रोध में भरे हुए आपके पक्ष के इस हजार योद्धा पाण्डवों का सामना करने लगे।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 8 श्लोक 1-22
  2. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 8 श्लोक 23-45

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