आज बिनु आनंद कौ मुख तेरौ।
कहा रही मन मारि भोरही, प्रति व्याकुल मन मेरौ।।
मोसौ गोप करै जनि सुंदरि, नहिं पावति वह भाव।
सुनौ बात कैसी उपजी है, कछु जनि करै दुराव।।
तब बोली मधुरी बानी सौ, कहा कहौ री तोहिं।
तेरे स्याम भले गुन नागर, कपटी कुटिल कठोहिं।।
निसि बसिबे की अवधि बदी माहिं, साँझ गए कहि आवन।
'सूर' स्याम अनतहिं कहुँ लुबधे, नैन भए दोउ सावन।।2712।।